काव्य भाषा : सौन्दर्य – डॉ प्रतिभा सिंह परमार राठौड़ माखननगर

Email

    सौंदर्य-बोध.
    …….

    मैंने
    मुझको
    बहुत परखा, बहुत निहारा
    पश्चात्
    मैंने
    मुझको
    बहुत तोड़ा,बहुत सुधारा।

    नख से शिख तक
    अलंकरण के उपादान
    तब भी थी,
    ‘श्रृंगार-विहीन’

    किन्तु
    अब
    सौंदर्य सहेजना
    आ गया मुझे।

    दो रोटी
    निरुपाय को खिलाकर
    उस
    उद्वितन ,’भूखे’ पेट के
    गीले नेत्रों में देखा जब
    तृप्ति का चरम
    तो
    मोरछल की रुचिता सा,
    श्रृंगारित हो गया
    मेरा ‘मन’।
    वो
    नन्हा पादप (पौधा)
    आज लद गया फलों से,
    अनायास ही कभी
    रोप दिया था
    मैंने
    जिसे,
    उसकी
    विस्तृत पयोद सी
    विराटता से
    श्रृंगारित हो गया मेरा ‘तन।

    औऱ
    वो,
    ‘ढीठ’
    अनाथ,अशरण
    जिसे
    अपने हठ पर
    अंकपाली सी मैं
    अंगुली पकड़कर
    शाला छोड़ आया करती थी
    आज
    मुझे
    ‘माँ’ कहता है।
    ‘माँ’
    उच्चारण की
    विमल,अम्लान
    अलकनंदा सी भव्यता लिए
    सौंदर्य का सर्वोच्च
    ‘माँ
    जिससे
    श्रृंगारित हो गया,
    मेरा सम्पूर्ण ‘जीवन’।
    ………
    -डॉ प्रतिभा सिंह परमार राठौड़
    माखननगर((बाबई)म.प्र.

आवश्यक सूचना

कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया लिखिए तथा शेयर कीजिए।

इस तरह भेजें प्रकाशन सामग्री

अब समाचार,रचनाएँ और फोटो दिए गए प्रारूप के माध्यम से ही भेजना होगा तभी उनका प्रकाशन होगा।
प्रारूप के लिए -हमारे मीनू बोर्ड पर अपलोड लिंक दिया गया है। देखें तथा उसमें ही पोस्ट करें।

1 COMMENT

  1. हार्दिक धन्यवाद ‘युवा -प्रवर्तक’ (देवेंद्र भैय्या) कविता को स्थान देने हेतु।?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here